चलो ‘नज़र’ यूँ बातें न बनाओ
जल्वागरी अपनी फिर से दिखाओ
वक़्त आ गया नये हासिल को
जौहर कुछ अपने हमको दिखाओ
कहने वालों के लब सीं दो
बात यूँ हो कि सुराख़ कर जाओ
हों फौलाद के हौसले सब
अब कि जान की बाज़ी भी लगाओ
अपने हुनर पे होगा सबको यक़ीं
इस बारी अपने हुनर तो दिखाओ
उठ के खड़ा न हो वह फिर कभी
अपने मुक़ाबिल को यूँ मात दे जाओ
मरहबा कहने से चूके न कोई
अपनी पहचान कुछ ऐसी बनाओ
मंज़िल ख़ुद करे क़दम-बोसी
आबला-पा को अपने इतना दुखाओ
गर शौक़ए-मंज़िल तेरा ख़ाब है
तो उठो रात जागो सहर बुलाओ
आज़माओ एक बारी फिर ख़ुद को
ख़रा उतर आज़माइश में दिखाओ
यही एक मौक़ा है मेरे ‘नज़र’
इबरामए-एहतराम को जगाओ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४