चारागरी तुम्हारी कुछ काम न आयी
जाके एक ग़ैर से हमने शिफ़ा करायी
नब्ज़ को थामते ही उसने बता दिया मर्ज़
उफ़ तौबा हाए हमसे तेरी बेवफ़ाई
ज़ियाँ अपना किया दिल तुमसे लगाया
तहतुलसरा को गयी सारी ख़ुदाई
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
चारागरी तुम्हारी कुछ काम न आयी
जाके एक ग़ैर से हमने शिफ़ा करायी
नब्ज़ को थामते ही उसने बता दिया मर्ज़
उफ़ तौबा हाए हमसे तेरी बेवफ़ाई
ज़ियाँ अपना किया दिल तुमसे लगाया
तहतुलसरा को गयी सारी ख़ुदाई
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४