नीली-नीली आँखें
गीली क्यों रहती हैं
क्यों आँसू बुझाकर
कोहरे में डूबी रहती हैं
क्या सोचती हैं
क्या बुनती हैं
क्यों डोलके फिर पलकें
इन पर मचलती हैं
कौन से सपने
कौन से ख़्याल
इनमें आते-जाते हैं
जो कहने से डरती हैं
मेरी आँखें तेरे
तन-मन को छू लें
क्या यह इस
चाहत में रहती हैं
ऐसी बात है गर
तो कह भी दो
दूर कहीं चलते हैं
ख़ाब गुलाबी चुनते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२