जबसे मैंने तुमको देखा है
यक़ीन जानो सारी रात नींद नहीं आती मुझे
जब साँस लेता हूँ मैं
तुम्हारे बदन की ख़ुश्बू से जिस्म महक उठता है
मुँदी हुई पलकों में आठों पहर
मैं तुम्हें ही देखता हूँ
तुम्हारे संदली बदन की मासूम अदाएँ
मुझे दीवाना कर चुकी हैं
तुम्हारी आँखों की चंचलता, शरारत…
मुझे बेक़रार और बेताब करती है
तुम्हारे रेशमी बालों के स्पर्श को
मेरे रुख़सार बहुत आतुर हैं
मैं तुम्हारे होंटों की नर्मी को
अपने होंटों पर महसूस करना चाहता हूँ
पूरे चाँद के जैसी हो तुम
मैं रात-दिन जिसके ख़ाब देखता हूँ
मानी यह कि
पहली नज़र में ही मुझे तुमसे प्यार हो गया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’