ख़ुदा मिलायेगा फिर मिलेंगे
फूल बंसत के फिर खिलेंगे
सीली हवा ने बदन छू लिया
सारी रात दोनों फिर जलेंगे
जी भर जब तुम्हें देख लेंगे
उन्तीस चाँद फिर ढलेंगे
तुम क़ुबूल कर लो हमको
हल्दी बदन पे फिर मलेंगे
कह दो हमसे प्यार नहीं
ज़ुबाँ से तेरा नाम फिर न लेंगे
इक बार तुम्हें देख लें हम
इस दुनिया से फिर चलेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४