रोज़े-आग़ाज़े-फ़िराक़ मुझे याद आया
फिर तेरी याद ने सारी रात रुलाया
शाम के साथ बैठे हैं पर तुम साथ नहीं
बुझते हुए सूरज को दिल में जलाया
क्या किससे बताऊँ वो विसाल कैसा था
जिसमें दिल मिला जिस्म न मिल पाया
तेरे बाद हमने जिसको चाहा वो न मिला
अहदे-इश्क़ तुमसे यूँ निभाया
इतमिनान अब कहाँ मेरे इस दिल को
ठण्डी साँसों को आग का दरया बनाया
तू ख़ुश रहे तुझको मिले हर चीज़
जो तुझको तेरा ये आशिक़ कभी न दे पाया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४