बिगड़े हमपे तुम ग़ैरों की तरह से
बुझाऊँ कैसे तुम्हें आग की तरह से
ग़ैर है तुम्हें अपनों की तरह से
देखा तुमने मुझे बेग़ानों की तरह से
मरके भी मुझको मेरा माशूक़ न मिला
मैं रहा क़ैसो-फ़रहाद की तरह से
इश्क़ ने जलाया तो हम ख़ाक हुए
गली से तेरी उड़े ग़ुबार की तरह से
आवारापन मुझको मेरा डुबाने लगा
आसमाँ का यक़ीं आया फ़क़ीरों की तरह से
सब्र के सिवा कुछ न रहा मेरे पास
अब फिरते हैं बेक़रारों की तरह से
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४