शाम से बड़े बेक़रार हैं
उलझे हुए नफ़स के तार हैं
रात-दिन सर्द हवा की आँच
बदन में ठण्डे शरार हैं
नब्ज़ में क्या अटक गया है
क्यों इतने बेइख़्तियार हैं
अजब हाल है इश्क़ में मेरा
खु़द से परहेज़गार हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
शाम से बड़े बेक़रार हैं
उलझे हुए नफ़स के तार हैं
रात-दिन सर्द हवा की आँच
बदन में ठण्डे शरार हैं
नब्ज़ में क्या अटक गया है
क्यों इतने बेइख़्तियार हैं
अजब हाल है इश्क़ में मेरा
खु़द से परहेज़गार हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’