हाले-दिल यूँ बिगड़ा मेरा कि सँभाला न जाये
मर्ज़े-मुहब्बत को दिल से निकाला न जाये
बताऊँ किसको अपनी तन्हाई का सबब मैं
खोलूँ जो मुँह किसी के सामने तो फिर खोला न जाये
तेरे दर्द को दिल में सजा रखा है मैंने और
इस लख़्ते-जिगर को दिल से निकाला न जाये
सुनिए इल्तिजा अब इस ग़रीब की हुज़ूर
किसी ग़ैर के हाथों में मेरे नाम का प्याला न जाये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४