छूने दो हर वो एहसास जिसे तुम महसूस कर सकती हो
तालिबे-जानाँ हूँ मैं क्या तुम मुझसे प्यार कर सकती हो
बिंध गये आँसू बन गये मोती बह न सके कोरी अँखियों से
तेरे दीद पे बरखा यह बरसे ख़ाब यह सच कर सकती हो
बड़े उदास कटते हैं यह दिन बड़ी बेक़रार जाती हैं रातें
इस मौसमे-बेरंग में तुम बस तुम रंग भर सकती हो
अपनी बाँहों में भर लूँ तुम्हें चाँदनी सारी रात बरसती रहे
मेरी यह जो तमन्ना है उसको तुम्हीं पूरा कर सकती हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
One reply on “तालिबे-जानाँ”
khubsurat gzal,wish u happy new year