दाग़ यह दिल से छुटाते न बना
दर्द-ए-दिल बुझाते न बना
हम दर्द बहुत थे मगर
दर्द किसी को सुनाते न बना
दिल के ज़ख़्म भर गये सब
उनका निशाँ मिटाते न बना
रोते देखा जो किसी को इश्क़ में
हमसे उसको हँसाते न बना
कभी हवा कभी पानी में ढह गया
घर था रेत का बनाते न बना
हम तन्हा हैं तन्हा हाँ तन्हा
एक यह सोज़ मिटाते न बना
किसी के हुस्न ने किया था पागल
यह अफ़साना भुलाते न बना
साँस वज़नी होती गयी हर दम
एक यह बोझ उठाते न बना
आज बहुत बेकल हो ‘नज़र’
कल क्यों इश्क़ जताते न बना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३