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मेरी ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल बुझाते न बना

दाग़ यह दिल से छुटाते न बना
दर्द-ए-दिल बुझाते न बना

हम दर्द बहुत थे मगर
दर्द किसी को सुनाते न बना

दिल के ज़ख़्म भर गये सब
उनका निशाँ मिटाते न बना

रोते देखा जो किसी को इश्क़ में
हमसे उसको हँसाते न बना

कभी हवा कभी पानी में ढह गया
घर था रेत का बनाते न बना

हम तन्हा हैं तन्हा हाँ तन्हा
एक यह सोज़ मिटाते न बना

किसी के हुस्न ने किया था पागल
यह अफ़साना भुलाते न बना

साँस वज़नी होती गयी हर दम
एक यह बोझ उठाते न बना

आज बहुत बेकल हो ‘नज़र’
कल क्यों इश्क़ जताते न बना


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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