मेरे ही हाथों में टूटा है दम मेरा,
तेरे ही स्पर्श से तख़लीक़ हुआ है
यह ‘विनय’
अभी-अभी मेरी मुट्ठी में
जन्मी है यह क़िस्मत
खुलेगी जो कई और कई
हासिलों के मुक़ाम आयेंगे
जिससे मेरी हर सोच जुड़ी है
वह सिर्फ़ एक तुम्हीं हो
मेरी इब्तिदा, ये ख़ुशगँवारियाँ
सब तुम्हीं से तो हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३