तुम गर हो सीना मुझ को बना लो धड़कन
आतिश बहे नस-नस में मिटे शीत की कम्पन
जिस सूरत पे दिल आ गया उसपे निसार है सब
मेरी यह उम्र, यह जान, यह यौवन
रंग-बिरंगे फूल खिले ख़ुशबू बिखरी हर-सू
मन की तितली फिरती है गुलशन-गुलशन
प्यार का जादू अब हम समझे क्या होता है
हम-तुम दोनों जैसे पानी और चन्दन
अब्रे-मेहरबाँ एक फ़साना रहा मुझको
चन्द्रमा खो गया जिसमें मेरी बढ़ा के लगन
वादा-ए-निबाह न किये फिर भी टूटे मुझसे
है नसीब मुझको बिन चाँद यह स्याह गगन
तेरी नज़र ने ज़िबह किया बारहा मुझको
रहा ताउम्र मुझ पर तेरा ही पागलपन
‘नज़र’ तेरी मेहर को बैठा है आज तलक
मरासिम बना के मुझसे जोड़ लो यह बन्धन
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
6 replies on “तुम गर हो सीना मुझको बना लो धड़कन”
बहुत बढ़िया विनय भाई!! बधाई.
वादा-ए-निबाह न किये फिर भी टूटे मुझसे
है नसीब मुझको बिन चाँद यह स्याह गगन
तेरी नज़र ने ज़िबह किया बारहा मुझको
रहा ताउम्र मुझ पर तेरा ही पागलपन
” wah ek or behtrin gazal”
Regards
सुंदर गीत है….
आप सभी पाठकों का तहे-दिल से शुक्रिया!
बढ़िया लिखा है आपे विनय जी ..
अर्श
शुक्रिया अर्श साहब!