जब भी धड़कता है दिल, खटकता है तेरी कमी का एहसास
साँस इसलिए लेता हूँ मैं, कि रह सकूँ तेरी यादों में उदास
क्या करूँ इस बीमारि-ए-दिल का, छुटती नहीं मेरे दिल से
कौन करे मेरी चारागरी कौन जाने किसको है दोस्ती का पास*
मुझको तन्हा रहना अच्छा लगता है तेरी तस्वीरों के साथ
जाने कब छुटे यह शौक़ मेरा, कब छुटे ज़िन्दगी की फाँस
मौत का धोखा है इक मुझ अकेले से ही, सबको तो मिल जाती है
जाने कब बुझेगी, मेरी नब्ज़ों में भटकती हुई, यह साँस
* दोस्ती के ढंग
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
5 replies on “जब भी धड़कता है दिल”
guru kamaal hi kar diya… kya likha hai by god!
meri soorat e haal ko inhi lafzo ki talaash thi jaise!
gulaam ho gaye aapki shayari ke dost!
cheers!
mujhko tanha rahna accha lagta hai teri tasveero ke saath!!!!
i love this line the most!
bravo once again!
संजू जी, और हम आपके कायल हो गये, आपका एक्साइटमंट देखकर!
क्या करूँ इस बीमारि-ए-दिल का, छुटती नहीं मेरे दिल से
कौन करे मेरी चारागरी कौन जाने किसको है दोस्ती का पास*
सुंदर रचना के लिए ढेरो साधुवाद
शुक्रिया प्रकाश जी!