तुमको नफ़रत है मुझसे मुझको क़रार है तुमसे
तन्हा मिलो मुझसे कभी’ कहूँ प्यार है तुमसे
तुम चलते हो मुझसे मुँह फेर के जाने किस बात पे
हालत मेरी नीयत दिल की असरार1 है तुमसे
ज़माने भर के काम आज निपटाने हैं मुझ एक को
तुम साथ दो निपट जायेंगे इक़रार है तुमसे
बहुत पाक था दिल मेरा बहुत पाक है आज भी
तुम कहते हो गुनाहगार तो गुनाहगार है तुमसे
तुम्हारे सर आज़माइशो-इम्तिहाँ का भूत है
हम हैं तेरे तालिब2 दिल तलबगार है तुमसे
हम तो डूबे हैं सर से पाँव तक तेरे इश्क़ में
इश्क़ मेरा सबा में बहता है जो नमूदार है तुमसे
शब्दार्थ:
1. secret, भेद; 2. willing(person), इच्छुक
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४