तुम क्या जानो कि किस क़दर हम
तुमसे मुहब्बत करते हैं
तुमको हमेशा से इन ख़ामोश फ़िज़ाओं
में ढूँढ़ा करते हैं
तेरी तस्वीरों को हम अपने दिल में
छुपाकर रखते हैं
तुमको हर पल हम अपने ख़्यालों
में सोचा करते हैं
तुम क्या जानो कि किस क़दर हम
तुमसे मुहब्बत करते हैं…
जैसे फ़िज़ाओं में हवाएँ रहती हैं
जैसे फूलों में ख़ुशबूएँ रहती हैं
ऐसे ही तेरी यादें मेरे दिल में रहती है
तू सदा-सदा मेरी रहेगी
मेरे दिल की सदाएँ कहती हैं…
तुम क्या जानो कि किस क़दर हम
तुमसे मुहब्बत करते हैं
तुमको हमेशा से इन चाँदनी रातों
में ढूँढ़ा करते हैं
तू जो नहीं तो तेरी तस्वीर
को देखा करते हैं
अब तो हरपल हम तेरे सपनों
में खोये रहते हैं
तुम क्या जानो कि किस क़दर हम
तुमसे मुहब्बत करते हैं…
ये दिल मेरा बेक़रार है तेरे लिए
मैं सबको भूल गया हूँ तेरे लिए
दीवारें सारी गिरा दो
मेरी तरह तुम भी सबको भुला दो
अब आ भी जाओ
तुम सबको छोड़ के मेरे लिए…
अब मेरा बस इस दिल पर रहा नहीं
तुमको जिस पल न देखा
वह पल कटा नहीं
मेरा दिल चीर के तू देख ले
इस दिल में प्यार तेरा भरा है…
तुम क्या जानो कि किस क़दर हम
तुमसे मुहब्बत करते हैं…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२