तुम रुलाते हो फिर रो लेंगे
तुम भी कह लो फिर बोलेंगे
दिल’ रफ़ू की आदत है हमें
ये चाक गरेबाँ फिर सीं लेंगे
जिस दिन तुम भूलोगे हमें
भेद तुम्हारे फिर खोलेंगे
तुम क़त्ल कर दो हमें
मौत की गोद में फिर सो लेंगे
आज फिर मर जाने दो हमें
रोज़ किसी और फिर जी लेंगे
तेरी हवस दिल से मिट जाये
बादा-ओ-शराब फिर पी लेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४