उलझे हुए दिल में तेरी कमी-सी क्यों है
क्या बात है आँखों में नमी-सी क्यों है
तेरी किस बात से यह दिल थम गया
दिल में हर धड़कन सहमी-सी क्यों है
क्या हुआ किस बात से ये दिल टूट गया
टूटे हुए दिल में ये नरमी-सी क्यों है
हमने देखा है तुम्हें हमें देखते हुए
चाहत में इतनी ग़लतफ़हमी-सी क्यों है
रूठे तुम तो फिर मानते भी नहीं हो
तेरे मिज़ाज में इतनी गरमी-सी क्यों है
Shayir: Vinay Prajapati Nazar
Penned on 01 January 2005
6 replies on “उलझे हुए दिल में तेरी कमी-सी क्यों है”
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी ..
क़ुबूल है जनाब!
कहता है क्या अच्छी गजल .आभार .
Thanks, Virendra ji!
behtareen ghazal!
Thanks, Meenakshi ji!