कल की रात बहुत हसीन थी
आँखों में उतर आये थे
महके हुए ख़्वाब…
पहले तो हम चराग़ों के नूर में
बैठे हुए बातें कर रहे थे,
फिर किसी रस्म के मौक़े पर
चहल-पहल थी घर में…
और वह झिलमिलाते सितारों वाले लिबास में
सजी सँवरी मुझसे नज़रें मिला रही थी
जिधर भी जाता
मुझे आगे वो दिख ही जाती
मुझे देखती और मुस्कुराती,
और अदा के साथ मेरे आगे चलती रहती…
जब मैं छत पे था
अचानक मेरे पीछे से आयी
अपने हाथों से मेरी आँखें मूँद के बोली –
मेरी उँगलियों के झरोखों से
देखों तो ज़रा वो चाँद
कितना हसीन नज़र आता है
उसकी नर्म बाँहों का मेरे काँधे पर स्पर्श
मुझे मेरे जागने के बाद भी
बिस्तर पे मिल रहा था
कितना हसीन था ये ख़्वाब और वो पल
और वो सुबह जब यह ख़्वाब देखा था…
मगर इक बात जो है,
वह लड़की कौन थी…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३