वह मौसम इक बार फिर सजा दे
प्यार करने की मुझको सज़ा दे
दीवानों की तरह तुझको देखे जाऊँ
हाथों की लकीरों में वह क़ज़ा दे
अरमान पिघलकर ख़त्म न हो जायें
दिल में साँसें दफ़्न न हो जायें
अपने सीने से लगा ले मुझे
दिल में अपने मुझको जगह दे
तेरी राहों पर निगाह है मेरी
मेरे दिल में सिर्फ़ चाह है तेरी
मेरे जीवन को अपनी चाहतों में डुबा दे
मेरे सनम जीने की मुझको वजह दे
वह मौसम इक बार फिर सजा दे
प्यार करने की मुझको सज़ा दे…
सूनी-सूनी आँखें रूख़ी-रूख़ी आँखें
ख़ाली-ख़ाली है सीना ख़ुश्क़ हैं साँसें
जुदा रहके जुदाई में जीना मुमकिन नहीं
मेरे प्यार को अपने प्यार की फ़िज़ा दे
दीवानों की तरह तुझको देखे जाऊँ
हाथों की लकीरों में वह क़ज़ा दे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ३० अप्रैल २००३
2 replies on “वह मौसम इक बार”
वह मौसम इक बार फिर सजा दे
प्यार करने की मुझको सज़ा दे
” atee sunder, aapke saree nazam , geet , dilko chune walen hain, i am learning from you to write’
Regards
आप अगर मुझे सम्मान के क़ाबिल समझती हैं तो आपका स्वागत है और मैं आपको तहे-दिल से धन्यवाद देता हूँ।