वह नहीं है तू जिसको मैं
प्यार करता हूँ
उसके जैसी है तू जिसको मैं
प्यार करता हूँ
उसके जैसा है चाँद और तू
चाँद के जैसी है
हुस्न जिससे ज़्यादा मुमकिन नहीं
वह मेरी नाज़नीं ऐसी है
वह नूर है इश्क़ का और तू
उस नूर का एक टुकड़ा है…
वह नहीं है तू जिसको मैं
प्यार करता हूँ
उसके जैसी है तू जिसको मैं
प्यार करता हूँ
जैसा और होने में बड़ा फ़र्क़ है
तू है ओस की बूँद,
और वह गुलाबों का अर्क़ है
वह मेरी तन्हाइयों में है
और तू मेरे रु-ब-रु है
वह मेरी इक नज़्म है और तू
उस नज़्म की उर्दू है
वह सुबह के सूरज की नरमी है और तू
उस तू उस सूरज का पानी में अक्स है
वह नहीं है तू जिसको मैं
प्यार करता हूँ
उसके जैसी है तू जिसको मैं
प्यार करता हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२