वह सिर्फ़ मेरा है मेरा ही रहेगा
जिस दिन भी पुकारा उसने मुझे
मेरे मद्यए-मुक़ाबिल के सर मौत का सेहरा होगा
वह सिर्फ़ मेरा है मेरा ही रहेगा
मैं दूर से ही देखकर उसे ज़िन्दा हूँ
हूँ इन्तिज़ार में वह किस दिन मुझे पुकारेगा
वह सिर्फ़ मेरा है मेरा ही रहेगा
उसके हाथों की लकीरें मैंने देखी नहीं
लेकिन ज़रूर इनमें मेरे चाँद का चेहरा होगा
वह सिर्फ़ मेरा है मेरा ही रहेगा
मेरी आँखों ने देखे हैं जितने भी ख़ाब हसीं
वह सदा उनसे रहा है वाबस्ता, सदा रहेगा
वह सिर्फ़ मेरा है मेरा ही रहेगा
उसका दर्द मुझको जुनूनी कर देता है
जाने कब वह मेरी बाँहों में आके मुस्कुरायेगा
वह सिर्फ़ मेरा है मेरा ही रहेगा
आँखों ने टूटे हुए ख़ाब के टुकड़े भुला दिये
वह इक सच्चे ख़ाब को किस दिन पूरा करेगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
2 replies on “वह सिर्फ़ मेरा है मेरा ही रहेगा”
मेरी आँखों ने देखे हैं जितने भी ख़ाब हसीं
वह सदा उनसे रहा है वाबस्ता, सदा रहेगा
बहुत बढ़िया.
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