अच्छा हुआ तू मेरे सीने में
दर्द बनके साँस लेती है
वरना तो दिल में…
हज़ार दर्दों को पनाह मिल जाती…
तेरा दर्द तो मेरा हम दर्द है
जाने दुनिया के दर्द
हमदर्द होते…
या तन्हाई में मुझे काटने दौड़ते
तेरा शुक्रिया कैसे अदा करूँ
तुमसे जीने का बहाना
और मरने की वज़ह
दोनों मिलीं हैं
अच्छा हुआ तू मेरे सीने में
दर्द बनके साँस लेती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’