मैंने सोचा था
मैं तुम्हें भूल जाऊँगा
और शायद तुमने भी यही सोचा हो कि
मैं तुम्हें भूल गया
मगर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं
दिल पे मैंने क़ाबू किया
बहुत ज़बर किया…
लेकिन यह शबो-रोज़
तुम्हारे ही ख़्यालों में मशरूफ़ रहा
मैं जिधर भी जिस शै को देखता हूँ
उसमें मुझे…
तुम्हारा ही नूर… तुम्हारी अदा… तुम्हारा रंग…
नज़र आता है
बस यही इक बात कहना चाहता हूँ
मैं तुम्हें भूल नहीं पाया,
शायद यही प्यार है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’