रातभर…
न आँख खोली गयी
न मूँदी गयी,
बोझल पलकों में
सारी रात जागी आँखें,
किनारों तक नींद आयी
और…
किनारों से खा़ब लौट गये,
मैं…
जाने किसके इंतिज़ार में
बैठा रहा…
रातभर…
कुछ न कुछ सोचता रहा
कभी तुम्हारे बारे में
कभी खु़द के…
सारी रात यूँ ही काटी मैंने…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’