वो नज़र क्या जो तेरी दीद न पा सके
वो दिल क्या जो तेरा ग़म न उठा सके
हूँ हाज़िर तेरे हुक़्म से फ़ना के लिए
तेरी हस्ती क्या गर तू मुझे न मिटा सके
हुस्न है ज़रिया-ए-राहे-इश्क़ महज़
वो सर क्या जो ये सौदा न उठा सके
किसी आशिक़ का अपना वो सर क्या जो
तेरे नाम से सजदे में न झुका सके
होंगे सबकी ज़िन्दगी में ग़म बड़े-बड़े
वो नाम ही क्या जो कोई दिल न दुखा सके
जलेंगे बुझेंगे दिल में शोले शबो-रोज़
वो अश्क़ क्या जो तेरा ग़म न बुझा सके
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’