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मेरी ग़ज़ल

वो अश्क़ क्या जो तेरा ग़म न बुझा सके

वो नज़र क्या जो तेरी दीद न पा सके
वो दिल क्या जो तेरा ग़म न उठा सके

हूँ हाज़िर तेरे हुक़्म से फ़ना के लिए
तेरी हस्ती क्या गर तू मुझे न मिटा सके

हुस्न है ज़रिया-ए-राहे-इश्क़ महज़
वो सर क्या जो ये सौदा न उठा सके

किसी आशिक़ का अपना वो सर क्या जो
तेरे नाम से सजदे में न झुका सके

होंगे सबकी ज़िन्दगी में ग़म बड़े-बड़े
वो नाम ही क्या जो कोई दिल न दुखा सके

जलेंगे बुझेंगे दिल में शोले शबो-रोज़
वो अश्क़ क्या जो तेरा ग़म न बुझा सके


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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