दूरियाँ फ़ासले फ़ुर्क़त कम न होंगे
मगर जान दिल में तेरे ग़म न होंगे
रहबर होता है हर राह नया आबला
जानता हूँ आबले मरहम न होंगे
उठके मंज़िल तुझ तक न आयेगी
जो उसकी राह में तेरे क़दम न होंगे
इश्क़ तक़दीर क़ज़ा मत सोचिए
किस ज़माने में दैरो-हरम न होंगे
तुम जो आना तो न बताना मुझे
देखता हूँ कब तक ये वहम न होंगे
तेरा आशिक़ बुलाती है दुनिया मुझे
क्या ये माथे पे इल्ज़ाम रक़म न होंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’