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मेरी नज़्म

वह लड़की [हासिल]

मगर इक बात जो है,
वह लड़की कौन थी…

आज फिर सहर की गली में
भटक रहा था खा़ब, उसका खा़ब…
आज फिर मैंने उसे
अपनी आँखों में रख लिया
ये खा़ब मेरा उससे मेरी
दास्ताने-मोहब्बत का था
उसकी मासूम खु़शज़बाँ आँखों के नीचे
कई दर्द दबे थे,
जो झाँकना चाहते थे
कि काश कोई उन्हें समझ ले
और मैं उसके दर्द को पी जाना चाहता था
बिल्कुल ज़हर की तरह
मैंने उसके बदन को भी
छूकर देखा था
वो तप रहा था आँच की तरह
शायद वो मुझसे
अपना हाले-दिल बयाँ
करते-करते थकने लगी थी
और मैं उसको खा़ब में ही
अपनी बाँहों में भर लेना चाहता था
मेरी यह ख़ाहिश ज्यों ज़बाँ पे आने लगी
मेरा ख़ाब बिखरने लगा
टूटने लगा…
मेरी आँखें खुल चुकी थीं
यह ख़ाब फिर सुबह-सुबह देखा
पिछले खा़ब की तरह…

मुझको यूँ लगता है
कि जब कोई आपके ख़ाबों में आना चाहता है
तो वह सुबह-सुबह आता है
कहते हैं न सुबह का सपना सच होता है
और जब आप किसी को बुलाना चाहते हैं
तो वह जागती रात के खा़बों में आता है
कितना फ़र्क़ है किसी को चाहने
और किसी के आने में…
ऐसी दस्तक यक़ीनन आपके दिल पर
तभी होती है,
जब उसकी चाहत बेहद पाक और
सच्ची होती है
लेकिन ख़ाब तो ख़ाब ही होते हैं
आपका दिल उन्हें मानने को क़तई
तैयार नही होता…
और आप फिर बीती हुई यादों के
गहरे और अँधे कुएँ की सीढ़ियों से
नीचे उतरने लग जाते हैं…
क्यों न उसका खा़ब
आपकी पलकों पर रोज़ सुबह दस्तक देता हो

मगर ये अहसास इस दिल को होने लगा है,

‘गर तूने पुकारा है मुझे आज,
तो मैंने सुन लिया है तुझे…’

हासिल: ‘खु़दा भी बदल गया
             मैंने उसे पत्थर देखा’

शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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