तेरी चौखट पे
एक रोशनी हुआ करती थी
आते-जाते
हमें दिखा करती थी
अब न वो है
और न तुम…
एक पल की ज़िन्दगी में भी
रुसवाई है,
जाने कैसी खु़दा
तेरी खु़दाई है
एक पल में रिश्ता बाँध देता है
एक पल में रिश्ता तोड़ देता है
जहाँ भी ढूँढ़ें हम
हमेशा अँधेरा रहता है
चलती रहती है
जो नब्ज़…
उसका चलना ज़िन्दगी नहीं कहता
मारो हज़ार ज़ख़्म
जिस्म पे
उसमें दर्द का बढ़ना
नहीं रहता
जब कोई यूँ
कुछ कहे बिना
अकेला छोड़ जाये
जो बुनो
वो रिश्ता तोड़ जाये
और ग़म जोड़ जाये
तब ज़ख़्म पर मवाद उभरता ही रहता है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९