यह ज़िन्दगी मेरी एक पतंग है
मैं जिसको चाहता हूँ
वह मुझसे बेरंग है
उड़ती है बिल्कुल अकेली
ढ़ूढ़ती है कोई सहेली
यह सच है या कोई पहेली
कभी इधर डोलती है
कभी उधर डोलती है
जाने किसमें क्या टटोलती है
यह मुमकिन को
ना-मुमकिन समझती है
जितना समझती है
उतना ही उलझती है
यह ज़िन्दगी मेरी, एक पतंग है
मैं जिसको चाहता हूँ
वह मुझसे बेरंग है
वह साथ नहीं मेरे
फिर भी लगता है मेरे संग है
यह ज़िन्दगी मेरी एक पतंग है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९