एक बार दिल से खेल फिर दिल को तोड़ दे
मुझे सहारा देकर बेसहारा छोड़ दे
ये दरिया बह रहा है तेरे ही जानिब
तू खु़द अपने हाथों से किसी ओर मोड़ दे
आबला दिल का भर आया है कभी तो देख
फिर सहला कर इसे तू चाहे तो फोड़ दे
वफ़ाकर कुछ पल के लिए मुझसे कभी
फिर धोखा़ देकर इस दिल को झंझोड़ दे
कुछ तजुर्बा कर लूँ मुहब्बत का मैं भी
फिर तू बेवफ़ाई का तकल्लुस जोड़ दे
मैंने कब कहा क़ैसो-फ़रहाद हूँ मैं
तू मगर मेरे अफ़साने को वही मोड़ दे
कुछ ही क़दम बढ़ तू मेरी सिम्त कभी
फिर फ़ासले बढ़ाकर मेरे खा़ब तोड़ दे
कुछ पल तेरा साथ पा लूँ फिर तेरा ग़म न होगा
जब तेरा जी भर जाए मुझे तन्हा छोड़ दे
क्या करूँ ऐसा तू ही बता दे मुझको सनम
जो तू खु़द अपने नाम से मेरा नाम जोड़ दे
क्या हुआ तुम्हें ‘नज़र’ ये कैसी ज़िद है
जान जाएगी ईमान जाएगा ये ज़िद छोड़ दे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’