दिल में रखा था जिसको हमने
अपना समझकर
क्या पता था कि
किरायेदार की तरह रहेगा वह
अपनी कश्ती जब मिल गयी
तो चल दिए दूर हमसे
अपना सामान बाँधकर
यह भी न सोचा कि
कैसे रहेंगे हम वीराने में
तन्हा रहकर जी लेते ज़िन्दगी को
गर हमसे न मिलते
पिछले मोड़ पर वह
जाने कैसे सिलेंगे
उसने जो दिए ज़ख़्म हमको
दिल में रखा था जिसको हमने
अपना समझकर
क्या पता था कि
किरायेदार की तरह रहेगा वह
ले जा रहे थे जब
ले जाते अपना सब कुछ
क्या ज़रूरत थी
ये यादें पीछे छोड़कर जाने की
क्या सभी होते हैं इस तरह
ऐसे बेवफ़ा ऐसे बेपरवाह
गर ऐसा है तो
नहीं चाहिए दोस्ती किसी से
रह लेंगे तन्हाइयों के साथ तन्हा
दिल में रखा था जिसको हमने
अपना समझकर
क्या पता था कि
किरायेदार की तरह रहेगा वह
आयेगा, कुछ पल ठहरेगा…
और चल देगा हमें इस तरह छोड़कर
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००