इश्क़ के पेंचो-ताब से तंग हैं हम
उस सादा चेहरे का रंग हैं हम
मैं साहिल पे पड़ा-पड़ा उसमें घुल गया
वो सागर की इक मौज संग है हम
मेरे खा़तिर का लहू आँखों में आ गया
इसे देख भी न बदला वो दंग हैं हम
जिसके लिए दिन-रात जलता है दिल
वो शम्ए-महफ़िल पतंग हैं हम
बे-ख़बर है वो उसे नहीं ख़बर
उसके दिल की हर खु़शी हर तरंग हैं हम
रंगे-जमाल मेरी ज़िन्दगी नहीं तो
ऐ शायिर ‘नज़र’ बहुत बे-रंग हैं हम
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’