नामाज़ी आँखों ने देखा तुझे यानि आयत पढ़ी
कभी खु़शी कभी झूठी शिक़ायत पढ़ी
जन्नत में न लगे मेरा जी तुम में लगे है
तेरी सूरत में सूरते-चाहत पढ़ी
शब देर तलक जागते हैं सोचते हैं तुझे
नफ़स-नफ़स मैंने तेरी इनायत पढ़ी
मौसमे-बहार के फूलों का हाल तो पूछो
जिन्होंने मेरे चेहरे से मेरी हालत पढ़ी
जो चाहता है तुमको उसका दिल तोड़ते हो
किस किताब में तुमने ऐसी रिवायत पढ़ी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’