तुम किसी बहाने से मुझको मिल जाते
गुल हज़ार रंगों के खिल जाते
दिल में खू़न का रंग तेरे होंठों-सा है
कभी तुम इसे मेरी आँखों में देख जाते
ऊपर से सभी ने देखा टटोला नहीं
वरना कुछ दोस्त मेरे भी हो जाते
तुमको चाहा तो ग़लत क्या है इसमें
जो था ग़लत तुम मुझको बतला जाते
मेरा कोई साथ नहीं देता किसी बात में
तुम साथ हो मेरे कभी कह जाते
मैं टूट रहा हूँ जैसे कोई खण्डहर
इक दफ़ा तो आकर तुम देख जाते
शायद मेरी दुआ खु़दा तक पहुँची है
मगर तुम इसका यक़ीन करा जाते
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’