यूँ मुस्कुरा के ग़म न दे मुझे
मारना है तो ज़िन्दा दफ़्ना दे मुझे
फ़ितरत है मेरी तुझपे एतबार
मेरे एतबार का कोई सिला दे मुझे
शबे-अजल भी तू न आयी अगर
क्या मजाल मौत बहला दे मुझे
पक आया एक ठोकर से ज़ख़्मे-पा
चारागर इसकी दवा दे मुझे
शोलाए-इश्क़ जवानी जला गयी
कोई तो सनमख़ाने का पता दे मुझे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४