एक अरसे से बैठा हूँ यूँ ही चुपचाप मैं
कहीं ख़फ़ा तो नहीं हूँ ख़ुद से आप मैं
तेरा पैग़ामे-ख़ाब आया था वक़्त हुआ
फिर अपलक बैठा हूँ शाम से आज मैं
तुम मेरे दिल में किरायेदार कभी न थे
फिर तुम्हें क्यों न याद करूँ आज मैं
नज़र को तक़लीफ़ बहुत है तेरे न होने से
गर बदलूँ तो कैसे बदलूँ यह हालात मैं
ठानी है ख़ातिर में तुम्हें पाने की सनम
क्योंकर जीत के न आऊँ गेसू आज मैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४