आज वह हर शख़्स मुझे बेग़ाना लगता है
कल तक जिसके लिए दिल दिवाना लगता है
निगाहों में हैं सारे अंदाज़ आज भी वही
मगर ख़ामोशी में नया अफ़साना लगता है
हो मशरूफ़ वह अपने कामों में क्या पता
बड़ा ख़राब उसका नज़रें चुराना लगता है
न कुछ कहता है वह न कुछ करता है
दूर-दूर रहता है मुझसे रोज़ाना लगता है
वह कल तक सलाम ‘विनय’ को करता था
आज उसको मुश्किल मुस्कुराना लगता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
3 replies on “आज वह हर शख़्स मुझे बेग़ाना लगता है”
this one is really amazing work, nazar saahab!
hello, you are a great poet of this time, keep writing great poem like this… best of luck!
You have expressed reality – real truth of life.
Jolly Uncle