ऐ दिल वहाँ चल जहाँ रहते हैं वह
उनके बिना कितने पल गुज़ारे हैं
खोये-खोये सारे वह बीते नज़ारें हैं
हाथों की लकीरों में उनका नाम है
कहाँ मुझसे दूर खोये हुए हैं वह
कुछ भी नहीं है उनकी यादों के सिवा
किसी से न गिला मेरा न शिकवा
तू प्यासा रेगिस्तान है बारिश वह
ऐ दिल वहाँ चल जहाँ रहते हैं वह
लम्बा सफ़र है राहें हैं सूखी-सूखी
फिर भी राहों के किनारे ताड़ हैं उगी
बरसों का सफ़र दिल में उनका बसर
उनको ही ढूँढ़ती है नज़र हर नज़र
ऐ दिल वहाँ चल जहाँ रहते हैं वह
उनकी यादों में खोये हुए हैं हम
थोड़े जागे थोड़े सोये हुए हैं हम
तू प्यासा रेगिस्तान है बारिश वह
ऐ दिल वहाँ चल जहाँ रहते हैं वह
खिलेंगे गुल हज़ार रंग के नये-नये
मिल गये जो इन्हीं रास्तों पर वह
गुलों की वादियाँ अगर चाहिए तुझे
काँटों की तहों पर चल मिलेंगे वह
ऐ दिल वहाँ चल जहाँ रहते हैं वह
किसी मोड़ के बाद आयेगी मंज़िल
चलता चल राह नयी ऐ मेरे दिल
तू प्यासा रेगिस्तान है बारिश वह
ऐ दिल वहाँ चल जहाँ रहते हैं वह
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
One reply on “ऐ दिल वहाँ चल जहाँ रहते हैं वह”
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