मेरी राहों की रेत पर उसके पैरों का निशाँ नहीं है
वह गुज़रा नहीं इधर से पर मोहब्बत कम नहीं है
आज़माना है तो आज़मा ले हम भी तेरे बेताबी हैं
जलाकर सब राख कर दें हम वह आतिशबाजी हैं
एक दिन तुम्हें अपना बना लेंगे, अपना बना लेंगे
अपनी साँसों में बसा लेंगे, साँसों में बसा लेंगे
अपनी मुहब्बत की शमा तुम्हारे दिल में जला देंगे
तुम हो हमारी सिर्फ़ हमारी यह सबको जता देंगे…
मेरी राहों की रेत पर उसके पैरों का निशाँ नहीं हैं
वह गुज़रा नहीं इधर से पर मोहब्बत कम नहीं है
तुमसे दिल लगाया है तुमसे ही दिल जलाया है
तुम पर दिल आया है तुमसे ख़ाब सजाया है
मन में जो आग जल रही है उसे बुझने न देंगे
दूसरा कोई तुम्हें छू सके वह दिन आने न देंगे
आज़माना है तो आज़मा ले हम भी तेरे बेताबी हैं
जलाकर सब राख कर दें हम वह आतिशबाजी हैं
एक दिन तुम्हें अपना बना लेंगे, अपना बना लेंगे
अपनी साँसों में बसा लेंगे, साँसों में बसा लेंगे
तुम्हारे साथ ख़ुद को जला देंगे, ख़ुद को जला देंगे
अपनी साँसों में बसा लेंगे, साँसों में बसा लेंगे
मेरी राहों की रेत पर उसके पैरों का निशाँ नहीं हैं
वह गुज़रा नहीं इधर से पर मोहब्बत कम नहीं है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
One reply on “मेरी राहों की रेत पर”
jalakar sab dekh lo hum wo aatish baji hai,bahut lajawab