ऐ मेरे दिल हम कब ग़लत थे
हम तो सच थे सच्ची चाहत थे
उसने समझा नहीं या धोख़ा किया
वो चाँद था हम स्याह फ़लक थे
जितना किया शायद एहसान किया
हम हमेशा ही बयान हालत थे
जब गुज़रा हम पे सितम उनका
हम ही बुलन्दि-ए-नफ़रत थे
वो हर लम्हा भिगोया तर आँखों ने
जब ‘विनय’ उसको एक लत थे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’