खिली हुई शाम की बिखरी हुई धूप में
बारिश जैसी हो तुम
ये लाल फूल खिले हुए हैं
तुम्हारी यादों की तरह
ये भीगे हुए पत्तों पर हवा की सरसराहट-से हैं
बहते हुए तुम्हारे ख़्याल…
तन्हा शाम ऐसे खु़शनुमा मौसम में
तुमसे दूर मेरे साथ और भी ग़मगीन
और ज़्यादा नागँवार हो गयी है
कहाँ हो तुम?
तुम्हारे एहसास, तुम्हारी याद, तुम्हारे ख़्याल
सब मुझे तन्हाई की सूली पर चढ़ा रहे हैं…
अब तो आ जाओ
या अपने पास बुला लो मुझे
मेरे महबूब मेरे मसीहा
बादे-खु़दा सब तेरा है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४