आपकी आँखों से पीकर हम काफ़िर हो गये
जुदा होकर आप से मुसाफ़िर हो गये
राज़े – मोहब्बत थे छपे अख़बार में
अगली सुबह ही सबपे ज़ाहिर हो गये
तुमने सिखायी मुझको हुस्न की अदा
अदा पे अदा रखने में हम माहिर हो गये
अब मिलोगे कब मिलोगे तुम मेरे जानम
दो घड़ी खु़द में आये बेखु़द फिर हो गये
हमने जिसे दोस्त समझा दिल से लगाया
दोस्त वो दुश्मन से भी शातिर हो गये
‘नज़र’ अब हमें ज़ौक़े-बुताँ का शौक़ नहीं
बज़्म-आरा दिलबर तेरी खा़तिर हो गये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’