बेवफ़ा बुतों के रोये दिल नहीं पिघलता
जो इश्क़ खो जाए फिर नहीं मिलता
दिल गर फट जाए किसी की चाहत में
वो तसल्ली के धागों से नहीं सिलता
हवा कितना सर पीटे कितना ज़ोर लगाये
परवत इक डग नहीं हिलता
बंजर ज़मीनों में घास उगती है मगर
बिना बारिश उनमें गुल नहीं खिलता
आदत भी छूट जाती है दग़ा पाने के बाद
खा़क हो चुका दिल और नहीं जलता
दुनिया में रंगो-शबाब की क़िल्लत नहीं
इक बार सँभला दिल फिर नहीं फिसलता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’