असर का असर देखा अब हमने
किसी को देखा-जाना अब हमने
वक़्त सब ज़ख़्मों का मरहम है
बरसों बाद माना अब हमने
कौन है दिल की दीवारों के बीच
उसको पहचाना अब हमने
सपने नींद की जुस्त-जू करते हैं
बदन में साँस को देखा अब हमने
टूटी हुई साँसें जोड़कर जीते रहे
ज़ीस्त को समझा अब हमने
उजालों की नदियाँ बहती रहीं
तैरना सीख लिया अब हमने
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’