इस ख़ाली सीने में दर्द-सा महका है
भोर हुई है आशियाँ में पंछी चहका है
काकुल में कुछ फूल गुंथ के तू आयी है
चमन में भँवरा-भँवरा बहका है
जिगर के कुछ ज़ख़्म हरे करिए ना
दिल में इंतकाम का शोला दहका है
सावन की रुत है बावरा मन माने ना
बारिश के पहले की हवा में लहका है
मनसा किसकी क्या है मैं कैसे जानू
गर्चे मैंने हर अय्यारी को चखा है
‘नज़र’ है अब भी तेरी राहों में जानम
दिल को अपनी हथेली पर ले रखा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४