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मेरा गीत

ओ री सखी

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ओ री सखी ओ री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी
हर पल यूँ लगता है कि
तू है मेरी तू है मेरी…

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी…

फूलों से नाज़ुक है तू
कोमल लताओं से कमसिन है तू
मोहब्बत के इरादे हैं तुझसे
मेरे दिल की आख़िरी चाहत है तू

नवाज़ा है हुस्न तुझे उस ख़ुदा ने
प्यार की देवी है तू
अब ख़्याल दिल में तेरा
दिन-रात मुझे तड़पाती है तू

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी…

तुझे मैंने माँगा है रब से
यह धरा बनी है जब से
तेरे लिए मेरी चाहत है तब से,
तू ही एक मंज़िल मेरी…

ओ री सखी ओ री सखी
सुन री सखी
तेरे बिना कैसी ज़िन्दगी
ये कैसी ज़िन्दगी…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२ 

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मेरा गीत

कोई न कोई किसी न किसी के लिए बना है

कोई न कोई किसी न किसी के लिए बना है
कहाँ कब वो कैसे मिलेगा ये किसे पता है…

ये पवन क्यों बहकने लगी है
ये धड़कन क्यों मचलने लगी है
ये कैसा नशा छाने लगा है
इक अजब-सा मज़ा आने लगा है

दिल को ऐसा क्यों लगने लगा है
कि वह मुझे मिल गया  है
जो मुझे मुझसे चुराने लगा है
जो मेरे लिए बना है…

कोई न कोई किसी न किसी के लिए बना है
कहाँ कब वो कैसे मिलेगा ये किसे पता है…

मेरे दिल को चुराकर तुम ले गये
मुझको दीवाना तुम कर गये
पहली पहली नज़र में ही सनम
इस दिल में तुम बस गये…

दिल से दिल कुछ कहने लगा है
मोहब्बत समझने लगा है
मैं कहूँगा पर तुम मानोगी नहीं
तुम हो मेरी मुझे पता है…

कोई न कोई किसी न किसी के लिए बना है
कहाँ कब वो कैसे मिलेगा ये किसे पता है…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२ 

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मेरा गीत

टूटा हूँ छूटा हूँ

टूटा हूँ छूटा हूँ
अकेला तन्हा रहता हूँ

कोई दोस्ताना कोई यराना
अब मैं रखता नहीं
मैंने देखा मैंने जाना
पर ख़ुद को पाया नहीं

एक आइना जो टूटा है
साँसों से गलता नहीं
मुझको यूँ ही लगता था
कि आसमाँ मिलता नहीं

टूटा हूँ छूटा हूँ
अकेला तन्हा रहता हूँ

दुनिया में लोग झूठे हैं
इसीलिए रिश्ते टूटे हैं
मौसम ये बदला है,
दिलों के बीच फासला है

झूठ ने दरवाज़े पे
फिर खटके लगाये हैं
काले-सफ़ेद-से
कुछ पर्दे गिराये हैं

टूटा हूँ छूटा हूँ
अकेला तन्हा रहता हूँ

रात है काली और दिन
बादलों से ढका हुआ है
दिल का आशियाँ भी
मेरी साँसों से बँधा है…

टूटा हूँ छूटा हूँ
अकेला तन्हा रहता हूँ
कोई दोस्ताना कोई यराना
अब मैं रखता नहीं…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२ 

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मेरा गीत

लम्हा-लम्हा लम्हा ठहरा हुआ है

लम्हा-लम्हा लम्हा ठहरा हुआ है
लम्हा-लम्हा लम्हा बह रहा है
ज़िन्दगी का सफ़र घड़ी-सा चल रहा है,
इन आँखों में ख़ाब-सा जल रहा है…

राहें तेरी बदल-सी गयी हैं
यादें तेरी सिमट-सी गयी हैं
तन में एक साँस है
जिसको तेरी तलाश है
ज़िन्दगी हर घड़ी यूँ लगने लगी
जैसे कोई फाँस है

फूलों के बाग़ों में
पतझड़ के मौसम हैं छाये हुए
जाने कब से यह-
बादल घनेरे हैं बिथराये हुए

लम्हा-लम्हा लम्हा ठहरा हुआ है
लम्हा-लम्हा लम्हा बह रहा है
ज़िन्दगी का सफ़र घड़ी-सा चल रहा है,
इन आँखों में ख़ाब-सा जल रहा है…

अब क्या है यहाँ पर मेरा
ख़त्म-सा हो गया है सवेरा
हाथों की लकीरों से
तेरे नाम क्यों मिटने लगे
कहानी नहीं ये ज़िन्दगी है,
जिसमें तुम अपने लगे

फिर न कहना कभी
जो तुमने कह दिया है
वक़्त है सनम ये,
जिसने हमें जुदा किया है

ये ही मिलायेगा
एक दिन हम दोनों को
ये ही मिटायेगा
जीवन के अँधेरों को…

लम्हा-लम्हा लम्हा ठहरा हुआ है
लम्हा-लम्हा लम्हा बह रहा है
ज़िन्दगी का सफ़र घड़ी-सा चल रहा है,
इन आँखों में ख़ाब-सा जल रहा है…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२ 

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मेरा गीत

मेरी नज़रों से तुम खो गये

मेरी नज़रों से तुम खो गये
हाय दिल पे लाखों सितम हो गये
अब तुम कहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ता फिरूँ
तेरे इश्क़ में मैं जियूँ या मरूँ
हाय क्या करूँ, हाय क्या करूँ…

पहली बार जब हम तुम मिले थे
इन पर्वतों पे बादल झुके थे
फूल-पत्तों को हवाएँ चूमती थीं
वो इश्क़ के सिलसिले थे…

मेरी नज़रों से तुम खो गये
हाय दिल पे लाखों सितम हो गये
अब तुम कहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ता फिरूँ
तेरे इश्क़ में मैं जियूँ या मरूँ
हाय क्या करूँ, हाय क्या करूँ…

मुहब्बत नस-नस में दौड़ती है
तेरी मेरी कहानियों को जोड़ती है
कैसे तुम्हें भूल जाऊँ
दर्द जिगर का कैसे मिटाऊँ…

मेरी नज़रों से तुम खो गये
हाय दिल पे लाखों सितम हो गये
अब तुम कहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ता फिरूँ
तेरे इश्क़ में मैं जियूँ या मरूँ
हाय क्या करूँ, हाय क्या करूँ…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२