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मेरी ग़ज़ल

वक़्त गुज़रा किया पल-पल आदतन

मैं ईज़ा1 में पड़ा नदामत2 को तड़पता रहा
जैसे शोला बुझती आग में भड़कता रहा

मैं कमरे में बैठा खोया रहा तेरे ख़्यालों में
और चौखट का दरवाज़ा खड़कता रहा

जैसे कभी बरखा के बादल बरसते नहीं
वैसे वो सारा दिन बर्क़-सा कड़कता रहा

तुमने जिसे बेजान समझ के ठुकरा दिया
वो दिल तेरे बाद तेरे नाम से धड़कता रहा

वक़्त गुज़रा किया पल-पल आदतन, पर’
फिर भी वो लम्हा आँख-सा फड़कता रहा

1. कष्ट या दु:ख; 2. पश्चाताप


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

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मेरी ग़ज़ल

मसाइले-इश्क़ से छूटा तो उलझा दुनिया में

रोशन है इस तरह दिले-वीराँ1 में दाग़ एक
उजड़े नगर में जैसे जले है चराग़ एक*

मसाइले-इश्क़2 से छूटा तो उलझा दुनिया में
ख़ुदा की नवाज़िश है कि बख़्शा दमाग़3 एक

मैं तो मर ही जाता मगर उसने मरने न दिया
मुझमें रह गयी नाहक़ हसरते-फ़राग़4 एक

करम मुझ पर करो शीशाए-दिल5 तोड़कर मेरा
कि यह महज़ है दर्द से भरा अयाग़6 एक

वो किसके दिल में जा बसा है छोड़कर मुझे
नूरे-इलाही!7 उसके बारे में दे मुझे सुराग़ एक

उसके लगाव ने ठानी है ज़िन्दगी जीने की चाह
याख़ुदा8 तू ऐसे हर लगाव को दे लाग9 एक

कोई आता नहीं यूँ तो मेरे घर की तरफ़ फिर भी
जाने किसको सदा दिया करता है ज़ाग़10 एक

ख़ुदा बुलबुल के नाले हैं चमन में गुल के लिए
काश तू देता मुझे आशियाँ11 के लिए बाग़ एक

कम जिये ज़िन्दगी को और ज़िन्दगी थी बहुत
‘नज़र’ बुझती हुई जल रही है आग एक

*मीर का शे’र माना जाता है, नामालूम किसका शे’र है
1. वीरान दिल में; 2. इश्क़ की समस्याएँ; 3. दिमाग़, brain 4. सुख और शान्ति की इच्छा; 5. दिल रूपी शीशा; 6. प्याला; 7. ईश्वर सही रास्ता दिखा!; 8. ऐ ख़ुदा; 9. दुश्मनी; 10. कौआ, Crow; 11. घर, घोंसला, nest


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

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मेरी ग़ज़ल

किसने पहचाना ‘नज़र’ तुम्हें भूलने के बाद

ज़िन्दगी से दर्द’ दर्द से ज़िन्दगी मिली है
ज़िन्दगी के वीराने में तन्हाई की धूप खिली है

मैं रेत की तरह बिखरा हुआ हूँ ज़मीन पर
उड़ता जा रहा हूँ उधर’ जिधर की हवा चली है

मैं जानता हूँ उसका चेहरा निक़ाब से ढका है
महज़ परवाने को लुभाने के लिए शम्अ जली है

बदलता है वो रुख़ को चाहो जिसे जान से ज़्यादा
मेरी तो हर सुबह’ दोपहर’ शाम यूँ ही ढली है

आज देखा उसे जिसे कल तक दोस्ती का पास था
आज देखकर उसने मुझे अपनी ज़ुबाँ सीं ली है

किसने पहचाना ‘नज़र’ तुम्हें भूलने के बाद
अब तन्हा जियो तुमको ऐसी ज़िन्दगी भली है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

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मेरी ग़ज़ल

तुम न मानो मगर तुम्हें चाहता हूँ

रात-दिन दुआओं में तुम्हें माँगता हूँ
तुम न मानो मगर तुम्हें चाहता हूँ

फूल-ख़ुशबू-बहार’ सब हैं चमन में
मैं सिर्फ़ तुझ को इनमें जानता हूँ

अब तेरा ही सपना है मेरी आँखों में
दिन-रात तेरे ख़्वाब में जागता हूँ

मन में तेरी यादों की नर्म धूप है
ख़्यालों के उजले मैदान में भागता हूँ

तुम मेरी मौत हो या ज़िन्दगी, कुछ हो
मैं तेरे ही नाम की ताबीज़ें बाँधता हूँ

पूछो मेरा हाल तुम कभी उस चाँद से
जिसे सारी रात तेरी याद में ताकता हूँ

तेरी नज़र में मेरी कुछ क़ीमत होगी
मगर मैं अनमोल तुम्हें आँकता हूँ


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरी ग़ज़ल

तुमको सबसे सच्ची दोस्ती मिले

तुमको ज़िन्दगी की हर ख़ुशी मिले
तेरे लबों को मीठी-मीठी हँसी मिले

हर दिन तुम्हें बहार का दिन हो
कभी न तेरी आँखों को नमी मिले

तुम जो हो जैसी हो सबसे अच्छी हो
तुमको सबसे सच्ची दोस्ती मिले

फूल का खिलना है तुम्हारा हँसना
तुम्हें सदा सहर की ताज़गी मिले


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५