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मेरी ग़ज़ल

ख़ाब में लम्स था सुम्बुल का

ख़स्ताहाल है जो तेरा बीमार
क्यों नहीं हो तुम बेक़रार

तुमने मुझसे बात नहीं की
जला गयी मुझे आहे-शोलाबार

शामे-ग़म मुझे दर्द थे
और तुम आये गोया बहार

पैराहन भीग जाता है लहू से
यूँ बहते हैं दीदाए-फ़िगार

देखना’ न छूना मेरे ज़ख़्म
जला न दे तुझे यह शरार

दाइम मशगूले-हक़ हूँ मैं
फिर भी आश्ना है अग़ियार

कोई हसरत से देखे मुझे
मैं उसे बना लूँ अपना प्यार

तुमसे दोस्ती का बहाना मिले
बन जाओ मेरे ग़मख़्वार

ख़ाब में लम्स था सुम्बुल का
वो क्या लम्हा था यादगार

‘नज़र’ को न भाये कुछ अगर
तो दिल में हो तुम बरक़रार

ख़स्ताहाल= abandon, बीमार= ill, बेक़रार= curious, आह= ah!, woe, शोला= fire, spark, गोया= like that, पैराहन= cloth, लहू= blood, दीदा= eyes, फ़िगार= afflicted, sore, ज़ख़्म= scar, wound, शरार= fire, spark, दाइम= always, मशगूल= busy, हक़= truth, आश्ना= friend, अग़ियार= enemy, ग़मख़्वार= who share sorrow, लम्स= touch, सुम्बुल= sumbul, hyacinth


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

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मेरी ग़ज़ल

इल्तिहाबे-दर्द से जलता है कलेजा

इल्तिहाबे-दर्द से जलता है कलेजा
कभी तेरी यादों को बिखराया कभी सहेजा

बयाँ दास्ताने-सोज़े-फ़ुगाँ किससे करूँ
सभी मेरे लफ़्ज़ देखते हैं न कि लहजा

सुकूनो-क़रारो-सबात से क्या मुझे
तू इस दिल के सौदे में मेरा सब कुछ ले जा

सदाए-राहे-मुहब्बत बुलाती है मुझको
दिमाग़ कुछ सोच के कहता है ठहर जा

गर्मिए-हौसले-जुनूँ का असर है यह
दिल करता है मुझपे नवाज़िशहाए-बेजा

अब तक न मेरे सलाम का कोई जवाब आया
तूने मुझको कोई ख़त भेजा कि न भेजा

ख़्याले-सुम्बुल से बीमार की बेक़रारी है
ऐ तबीब ‘नज़र’ को इसका इलाज दे जा


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

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मेरी ग़ज़ल

तुम अपनी प्यारी बातों से

मैंने दुआ की ख़ुदा ने क़ुबूल की तुम ज़िन्दगी बन गये
तुम धड़कनों को महकाकर मेरे ख़्वाब रंग गये

मैं तुम्हारे बारे में दिन-दिनभर बैठकर सोचता था
तुमने मुझसे बात की मेरे दर्द बर्फ़ बन गये

तेरी सूरत भी ख़ूब है और तेरी सीरत भी ख़ूब है
तुम अपनी प्यारी बातों से मेरे भी लफ़्ज़ रंग गये

तेरी हुस्ने-सादगी ने मुझे अपना दीवाना कर लिया
तुम बेक़रार दिल का राहतो-आराम बन गये


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

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मेरी ग़ज़ल

मैं कम-शक़्ल हूँ

जिसे चाहता हूँ वो कहता है मुझसे प्यार न कर
दर्द सहना पड़ेगा’ मेरा इन्तज़ार न कर

मेरा दिल धड़कता है तुम्हारा नाम लेता है ज़ोर-ज़ोर
कहता है दीवाने मुझपे तू इख़्तियार न कर

मेरी दुआ में असर आया है एक मुद्दत के बाद
सर्द आह कहती है मुझको शरार न कर

दुनिया का डर कैसा? क्या उसे नहीं मेरा एतबार
बावजूदे-प्यार वह नहीं देखता है मुझे मुड़कर

मैंने क्या ख़ता की ख़ुदाया मुझे किस बात की
उसकी नज़र क्यों झुक जाती है मुझे देखकर

मैं कम-शक़्ल हूँ उसे इस बात की नहीं परवाह
उसको चाहूँगा मैं सारे रस्मो-रिवाज़ तोड़कर



शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५

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मेरी ग़ज़ल

ख़ुदाया कभी करम मुझ पर भी

ख़ुदाया1 कभी करम मुझ पर भी
सुम्बुल2 की थोड़ी मेहर इधर भी

प्यार क्या है नहीं जानता,
मगर सिखा मुझको ये हुनर भी

तेरे ख़ाब सजाये आँखों में
ख़ाब है चाँद है सहर3 भी

इश्क़ की आग जो इस दिल में है
एक अक्स4 रहे इसका उधर भी

मोहब्बत का दावा किया जो
मैं करूँगा रोज़े-महशर5 भी

चाहिए अगर जान भी ले लो
मगर लेना मेरी कुछ ख़बर भी

शब्दार्थ:
1. ऐ ख़ुदा 2. सुम्बुल(प्रेयसी), 3. भोर, 4.परावर्तन(Reflection), 5. निर्णय का दिन(Judgment day)


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५/२०११