ख़ुदाया1 कभी करम मुझ पर भी
सुम्बुल2 की थोड़ी मेहर इधर भी
प्यार क्या है नहीं जानता,
मगर सिखा मुझको ये हुनर भी
तेरे ख़ाब सजाये आँखों में
ख़ाब है चाँद है सहर3 भी
इश्क़ की आग जो इस दिल में है
एक अक्स4 रहे इसका उधर भी
मोहब्बत का दावा किया जो
मैं करूँगा रोज़े-महशर5 भी
चाहिए अगर जान भी ले लो
मगर लेना मेरी कुछ ख़बर भी
शब्दार्थ:
1. ऐ ख़ुदा 2. सुम्बुल(प्रेयसी), 3. भोर, 4.परावर्तन(Reflection), 5. निर्णय का दिन(Judgment day)
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५/२०११